Garibi sad shayari in hindi

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 Garibi sad shayari in hindi






दरिया दरिया घूमे मांझी,
पेट की आग बुझाने,
पेट की आग में जलने वाला,
किस किस को पहचाने...!!!!





उस गरीब ने अपने फटे कपड़े,
को पूरे ढंग से सिला,
पर वो अपनी फटी किस्मत को,
न सिल सका...!!!!!




जब भी जिंदगी में आती है गरीबी,
दूर होने लगते है अपने ही क़रीबी...!!!!




ये गंदगी तो महल वालों ने फैलाई है साहब,
वरना गरीब तो सड़कों से थैलीयाँ तक उठा लेते हैं..!!!!




चेहरा बता रहा था कि मारा है भूख ने,
सब लोग कह रहे थे कि कुछ खा के मर गया।...!!!!



यूँ गरीब कहकर खुद की तौहीन ना कर,
ए बंदे गरीब तो वो लोग है,
जिनके पास ईमान नहीं है...!!!




ज़मीन तो जल चुकी है,
लेकिन आसमान बाकी है मेरे दोस्तों,
ओ पानी के सूखे कुएं,
तुम्हारा इम्तेहान बाकी है,
तू बरस जाना रे मेघा जल्दी,
किसी का घर गिरवी तो,
किसी का लगान बाकी है...!!!




बड़ा शौक़ था उन्हे मेरा,
आशियाना देखने का,
जब देखी मेरी गरीबी तो,
रास्ता बदल लिया...!!!




बीच सड़क इक लाश पड़ी थी,
और ये लिखा था,
भूख में ज़हरीली रोटी भी,
मीठी लगती है..!!!




कही बेहतर है तेरी अमीरी से,
मुफसिली मेरी,
चंद सिक्के के ख़ातिर तू ने,
क्या नहीं खोया हैं..!!!




मेरे साथ हमेशा चलती गई,
ऐ गरीबी तू बहुत ईमानदार हुई...!!!




इसे नसीहत कहूँ या जुबानी चोट,
साहब एक शख्स कह गया,
गरीब मोहब्बत नहीं करते...!!!!




उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं,
क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं..!!!




बात मरने की भी हो तो कोई और नहीं देखता,
गरीब, गरीबी के सिवा कोई और नहीं देखता..!!!!




गरीबी बन गई तश्हीर का सबब आमिर,
जिसे भी देखो हमारी मिसाल देता है..!!!!




गरीबी को कागज पे उतार कर,
अमीर बन जाते हैं यहाँ लोग,
ये कैसा मुल्क है जहाँ दर्द नहीं,
दर्द की तस्वीर खरीद लेते हैं लोग..!!!




हटो काँधे से आँसू पोंछ डालो,
वो देखो रेल-गाड़ी आ रही है,
मैं तुम को छोड़ कर हरगिज़ न जाता,
ग़रीबी मुझ को ले कर जा रही है...!!!





माना नहीं है मखमल का बिछौना मेरे पास,
पर तू ये बता कितनी राते चैन से सोया है...!!!




पैसों की अमीरी जरूर हो,
मगर सोच की गरीबी ना हो....!!!



शाम को थक कर टूटे झोपड़े में,
सो जाता है वो मजदूर,
जो शहर में ऊंची इमारतें बनाता है..!!!!




सुला दिया माँ ने भूखे बच्चे को ये कहकर,
परियां आएंगी सपनों में रोटियां लेकर...!!!!





दोपहर तक बिक गया बाजार,
का हर एक झूठ ,
और एक गरीब सच लेकर,
शाम तक बैठा ही रहा..!!!!




जो गरीबी में एक दिया भी न जला सका,
एक अमीर का पटाखा उसका घर जला गया..!!!




यूँ तो ख़िलाफ़त के कोई भी ख़िलाफ़ नही है
फिर क्यों ग़रीबी के बदन पर लिहाफ़ नही है..!!!




जुरअत-ए-शौक़ तो,
क्या कुछ नहीं कहती लेकिन,
पाँव फैलाने नहीं देती है चादर मुझ को..!!!



उन घरो में जहाँ मिट्टी कि घड़े रखते हैं,
कद में छोटे मगर लोग बड़े रखते हैं..!!!




क्या बताऊं अब कैसे गुजारा हो रहा है,
 गरीबी को लेकर अब पछतावा हो रहा है..!!!




बहुत जल्दी सीख लेता हूँ,
जिंदगी का सबक,
गरीब बच्चा हूँ बात-बात पर,
जिद नहीं करता...!!!!




यहाँ गरीब को मरने की जल्दी यूँ भी है,
कि कहीं कफ़न महंगा ना हो जाए..!!!



मैं कई चूल्हे की आग से भूखा उठा हूँ,
ऐ रोटी अपना पता बता,
तू जहाँ बर्बाद होती हैं...!!!!




आज तक बस एक ही बात समझ नहीं आती,
जो लोग गरीबों के हक के लिए लड़ते हैं,
वो कुछ वक़्त के बाद अमीर कैसे बन जाते हैं..!!!!



जो लोग बदुआओं मे देते हैं,
मै वैसी जिंदगी जी रहा हूँ,
गरीबी एक जहर है,
जिसे बड़े अदब से मै पी रहा हूँ..!!!




मुफ़लिसों की ज़िंदगी का ज़िक्र क्या,
मुफ़्लिसी की मौत भी अच्छी नहीं..!!!




वो जिनके हाथ में हर वक्त छाले रहते हैं,
आबाद उन्हीं के दम पर महल वाले रहते हैं..!!!




विरासत में मिली हुई गरीबी कोई,
अभिशाप नहीं होती,
बहुत से अमीरों की जिंदगी गरीब,
हालत में ही शुरू होती....!!!!



भटकती है हवस दिन-रात,
सोने की दुकानों पर,
गरीबी कान छिदवाती है,
तिनके डाल देती है...!!!



मजबूरियाँ हावी हो जाएँ ये जरूरी तो नहीं,
थोडे़ बहुत शौक तो गरीबी भी रखती है..!!!




ठहर जाओ भीड़ बहुत है,
तुम गरीब हो,
कुचल दिए जाओगे..!!!




शाम को थक कर,
टूटे झोपड़े में सो जाता है,
वो मजदूर जो शहर में,
ऊंची इमारतें बनाता है...!!!!




हर गरीब की थाली में खाना है,
अरे हाँ लगता है यह चुनाव का आना है..!!!



अपनी ग़ुर्बत की कहानी हम,
सुनाएँ किस तरह,
रात फिर बच्चा हमारा रोते रोते सो गया..!!!



ड़ोली चाहे अमीर के घर से,
उठे चाहे गरीब के,
चौखट एक बाप की ही सूनी होती है..!!!



परिस्थिति है ये मेरी, विचार नहीं,
ग़रीब जरूर हूं मैं साहब लाचार नहीं...!!!



अमीरी का हिसाब तो,
दिल देख के कीजिये साहब,
वरना गरीबी तो,
कपड़ो से ही झलक जाती है..!!!




अपने मेहमान को पलकों पे बिठा लेती है,
गरीबी जानती है घर में बिछौने कम हैं...!!!



मेरे हिस्से की रोटी सीधा मुझे दे दे ऐ खुदा,
तेरे बंदे तो बड़ा ज़लील करके देते हैं..!!!




उसने यह सोचकर अलविदा कह दिया,
गरीब लोग हैं मुहब्बत के सिवा क्या देँगे..!!!



ग़ुर्बत की तेज़ आग पे अक्सर पकाई भूख,
ख़ुश-हालियों के शहर में,
क्या कुछ नहीं किया..!!!



घटाएं आ चुकी हैं आसमां पे,
और दिन सुहाने हैं,
मेरी मजबूरी तो देखो मुझे,
बारिश में भी काग़ज़ कमाने हैं..!!!



गरीबी पैसों से नहीं बल्कि,
हमारी सोच से आती हैं,
और जो सोच से गरीब हो उसकी,
तरक्की नहीं होती हैं....!!!




तहजीब की मिसाल गरीबों के घर पे है,
दुपट्टा फटा हुआ है मगर उनके सर पे है..!!!




वो जिनके हाथ में हर वक्त छाले रहते हैं,
आबाद उन्हीं के दम पर महल वाले रहते हैं..!!!




ग़रीब सियासत का सबसे पसंदीदा खिलौना है,
उसे हर बार मुद्दा बनाया जाता है,
हुकूमत के लिए..!!!




छीन लेता है हर चीज़ मुझसे ऐ खुदा,
क्या तू मुझसे भी ज्यादा गरीब है..!!!

खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए,
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझ को...!!!


 

अमीरों का होता हर तरफ राब्ता,
गरीबों को मगर कौन है पूछता....!!!




अमीर की बेटी पार्लर में जितना दे आती है,
उतने में गरीब की बेटी अपने ससुराल चली जाती है..!!!!




मजबूरियां हावी हो जाये ये,
जरूरी तो नहीं साहेब,
थोड़े बहुत शौक तो,
गरीबी भी रखती है ...!!!




खाली पेट सोने का दर्द,
क्या होता मुझे नही पता,
ना जाने जूठन खा के,
वो बच्चे कैसे बड़े हो जाते..!!!!




वो जिसकी रोशनी कच्चे घरों तक भी पहुँचती है,
न वो सूरज निकलता है,
न अपने दिन बदलते हैं..!!!

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